जो कोउ प्रभु के आश्रय आवै
jo kou prabhu ke ashray aawai
जो कोउ प्रभु के आश्रय आवै।
सो अन्याश्रय सब छिटकावै॥
बिधि-निषेध के जे जे धर्म।
तिन को त्यागि रहे निष्कर्म॥
झूठ, क्रोध, निंदा तजि देहीं।
बिन प्रसाद मुख और न लेहीं॥
सब जीवन पर करुना राखै।
कबहुँ कठोर बचन नहिं भाखै॥
मन माधुर्यरस माहिं समोवै।
घरी पहर पल बृथा न खोवै॥
सतगुरु के मारग पग धारै।
हरि सतगुरू बिच भेद न पारै॥
ए द्वादस लक्षन अवगाहै।
जे जन परा परमपद चाहै॥
- पुस्तक : कल्याण पत्रिका (संतबानी अंक) (पृष्ठ 293)
- संपादक : हनुमान प्रसाद पोद्दार
- रचनाकार : हरिव्यास देवाचार्य
- प्रकाशन : गीता प्रेस गोरखपुर
- संस्करण : जनवरी 1955
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