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जहँ हरि-भक्त चरण पधरावै

jahan hari bhakt charn padhrawai

रानाबाई

रानाबाई

जहँ हरि-भक्त चरण पधरावै

रानाबाई

और अधिकरानाबाई

    जहँ हरि-भक्त चरण पधरावै।

    तीरथ एक कहा कहिये, तहाँ भुवन चतुर्दश धावै॥

    भृगुजी क्रोध विवश जायो तज, हरि के लात लगावै।

    प्रभु की प्रभुताई का बरणो, जाकै चरण पुजावै॥

    चतरो बिप्र साथ संगत रहे, बीरा बैर करावै।

    पितृ फूल दे जबरन ताको, हर पेड़ी पठवावै॥

    जहाँ तिरथन को गुरु पुष्कर, सतगुरु धूण रमावै।

    डेरा की धणयाप करता, छत्री मद चकरावै॥

    कथा कीरतन भंग पड़ता, कांबल आग बंधावै।

    गठड़ी बंधी देखकर जोड्या, अब तो सकलां नावै॥

    भगवत भक्त निराली लीला, पार कोई ना पावै।

    'राना' सतगुरु तीरथ खोजी, अमरापुर चली आवै॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : जाटों की गौरव गाथा (पृष्ठ 45)
    • रचनाकार : रानाबाई
    • प्रकाशन : राजस्थानी ग्रंथागार
    • संस्करण : 2016

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