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इतने गुन जामें सो संत

itne gun jaame.n so sa.nt

भगवत रसिक

भगवत रसिक

इतने गुन जामें सो संत

भगवत रसिक

और अधिकभगवत रसिक

    इतने गुन जामें सो संत।

    श्री भागवत मध्य जस गावत, श्री मुख कमलाकंत॥

    हरि को भजन, साधु की सेवा, सर्वभूत पर दाया।

    हिंसा लोभ दंभ छल त्यागैं, विष सम देखैं माया॥

    सहनसील, आसय उदार अति, धीरज-सहित विवेकी।

    सत्य बचन सब कों सुखदायक, गहि अनन्य-व्रत एकी॥

    इन्द्रीजीत अभिमान जाके, करै जगत कों पावन।

    ‘भगवतरसिक' तासु की संगति, तीनहुँ ताप-नसावन॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : ब्रजमाधुरी सार (पृष्ठ 231)
    • रचनाकार : भगवतरसिक
    • प्रकाशन : हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग
    • संस्करण : 2002

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