हरी हमारे हमेश हरदम हरेक शै में झलक रहे हैं।
जो इनको गुलशन में जाके देखा हरेक गुल में चमक रहे हैं॥
गुलाब में गोपाल बिराजें, बसे हैं गेंदे में गोविंद।
गुलमेंहदी में गुणों के सागर, मौलश्री में रहें मुकुंद॥
कृष्ण सुशोभित कमल के अंदर, अनार में हैं आनंद कंद।
बनमाला बेले में बसते, गुलप्यारी में गोकुल चंद॥
डार-डार में, पात-पात में, विपिन बिहारी चहक रहे हैं।
जो इनको गुलशन में जाके देखा, हरेक गुल में चमक रहे हैं॥
कमल-नयन केवड़े में राजें, जुही में रहते जन रंजन।
कुंद में करुणानिधान बसते, चांदनी में हैं चंद्रवदन॥
महाराज मोतिये में शोभित, मालती में हैं मनमोहन।
माखन-चोर बसें मरुए में, माधवी में हैं मधुसूदन॥
सड़क, रविश पर घास ओस पर, छैल छबीले छिटक रहे हैं॥
जो इनको गुल्शन में जाके देखा, हरेक गुल में चमक रहे हैं॥
दीनबंधु हैं दाऊदी में, दुपहरिया में दुख-भंजन।
लाले में लीलाधारी हैं, दौने में हैं दुष्ट-दलन॥
लाले में लीलाधारी हैं, दौने में हैं दुष्ट-दलन॥
सूर्यमुखी में सोहें सांवरे, केतकी में हैं कुँज-रमन।
गुलाबांस में गुणागार हैं, कामिनी में कालीमर्दन॥
फलों में, पेड़ो में, टट्टियों में, कियारियों में कुदक रहे हैं।
जो इनको गुल्शन में जाके देखा, हरेक गुल में चमक रहे हैं॥
हरी हरि-शृंगार के अंदर, जवा में जलशायी-प्रभुवर।
चमेली में चैतन्य विराजें, त्रिभंग में त्रिभुवन ईश्वर॥
कठोर कर्नेल में विराजें, कुमुद में कोमल श्यामकुंवर।
कथन कहाँ तक करै कोई, है प्रकाश घट-घट के भीतर॥
विचारकर ‘राधेश्याम’ ढूंढा, तो वो ही सब में दमक रहे हैं।
जो इनको गुल्शन में जाके देखा, हरेक गुल में चमक रहे हैं॥
- पुस्तक : राधेश्याम-विलास (पृष्ठ 15)
- रचनाकार : राधेश्याम कथावाचक
- प्रकाशन : राधेश्याम पुस्तकालय, बरेली
- संस्करण : 1925
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