होरी खेलत ब्रज नंद-लड़ैतौ लाल
hori khelat braj nand laDaitau lal
होरी खेलत ब्रज नंद-लड़ैतौ लाल।
चोवा चंदन और अरगजा कंठ सोहत मोतिन माल॥
कोउ गुलाल केसरि भरि लीयें कोऊ कंचन-थाल।
इक नाचत, इक मृदंग बजावत, गावत गीत रसाल॥
छिपत फिरत कुंजन महियां हा-हा करत भई बेहाल।
‘चतुर्भुज’ प्रभु गरें लगाइ लई रीझि दई उर-माल॥
- पुस्तक : अष्टछाप कवि : चतुर्भुजदास (पृष्ठ 75)
- संपादक : हरगुलाल
- रचनाकार : चतुर्भुजदास
- प्रकाशन : प्रकाशन विभाग सूचना और प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार
- संस्करण : 2009
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