हे घन स्याम, कहाँ घनस्याम
he ghan syaam, kahaa.n ghanasyaam
सत्यनारायण कविरत्न
Satyanarayan Kaviratna
हे घन स्याम, कहाँ घनस्याम
he ghan syaam, kahaa.n ghanasyaam
Satyanarayan Kaviratna
सत्यनारायण कविरत्न
और अधिकसत्यनारायण कविरत्न
हे घन स्याम, कहाँ घनस्याम।
रज मँडराति चरन-रज कित सों सीस धरैं अठजाम॥
स्वेत पटल लै घन, कहँ त्यागी सुरभी सुखद ललाम।
मोरनि घोर सोर चहुँ सुनियत, मोरमुकुट किहि ठाम॥
गरजत पुनि-पुनि, कहाँ बतावौ मुरली मृदु सुर-धाम।
तड़पावत हौ तड़ितहिं छिन-छिन, पीतांबर नहिं नाम॥
- पुस्तक : ब्रजमाधुरी सार (पृष्ठ 371)
- संपादक : वियोगी हरि
- रचनाकार : सत्यनारायण कविरत्न
- प्रकाशन : हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग
- संस्करण : 2002
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