हरि पथ चलहु न साँझ सबेरौ
hari path chalahu na sanjh saberau
हरि पथ चलहु न साँझ सबेरौ।
ब्याल सुकाल उलूक लागि हैं आलस होत अबेरौ॥
कर्म फंद संबंध सबन सौं जन्म-जन्म कौ झेरौ।
जानि बूझि अब होत कृपन अबहीं किन करहु निबेरौ॥
कहा करत ममता झूठे सों दिन दस छयौ बसेरौ।
लैहैं ऐंचि बधिक बनसी लौं छुटि जैहै तन तेरौ॥
जुदिन सुदिन जीवै तूँ ह्वै रहि हरिदासन को चेरौ।
‘बिहारीनदास’ बस तिन्हैं भरोसौ स्याम चरन रति केरौ॥
- पुस्तक : कल्याण पत्रिका (संतबानी अंक) (पृष्ठ 287)
- संपादक : हनुमान प्रसाद पोद्दार
- रचनाकार : बिहारिनिदेव
- प्रकाशन : गीता प्रेस गोरखपुर
- संस्करण : जनवरी 1955
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