हरि मुख देख बाबा नंद
hari mukh dekh baaba na.nd
हरि मुख देख बाबा नंद।
कमल नैन किसोर मूरति, कला सोलह चंद॥
सीस मुकुट जराय जगमग, मोर पुच्छ सुरंग।
हँसिन बिगसिन लसनि मम धन, ठाड़े ललित त्रिभंग।
कटि किंकिनी झनतार झनकत, संगीत उठत तरंग॥
बदन पर अलक बिराजत, मानों बल्लभ अंग।
लाल लकुटी कर जु सोभित, चाल हस्ति मतंग॥
पाय नूपुर अतिहि रुनझुन, शब्द उठत उमंग।
पीत पट सुभ कंध सोहै, घन छटा मानों संग॥
मुक्त-गुंजामाल उर पर, किधों त्रिबैनी गंग॥
ऐसी सोभा निरखि मोहन, नर्तत सदा सुधंग।
‘रसिकराय’ दयाल लीला, गिनत अनत न रंग॥
- पुस्तक : गो. हरिराय जी का पद-साहित्य (पृष्ठ 45)
- संपादक : प्रभुदयाल मीतल
- रचनाकार : गोस्वामी हरिराय
- प्रकाशन : साहित्य संस्थान मथुरा
- संस्करण : 1962
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