हरि हरि जप लेनी औसर बीतो जाय
hari hari jap leni ausar bito jay
हरि हरि जप लेनी औसर बीतो जाय।
ज दिन गये सो फिर नहिं आवें करि विचार मन लाय॥
यह जग बाजी साँच न जानो तामें मत भरमाय।
कोई किसी का है नहीं बौरे नाहक लिये लगाय॥
अंत समय कोई काम न आवें जब यम दें बौराय।
चरणदास कहैं सहजो बाई सत संगत शरणाय॥
सहजोबाई कहती है कि हे मूर्ख! तुम्हें जो अवसर मिला था, वह बीत रहा है। तू परमात्मा का सुमिरन क्यों नहीं कर लेता! तुम मन में भली प्रकार से विचार कर देखो कि जो समय बीत गया तो फिर नहीं आना है। यह संसार एक खेल है, इसे सच मत जानो अर्थात संसार के खेल को सच जानकर इसमें भ्रमित मत हो। इस संसार में कोई किसी का नहीं है, व्यर्थ में भ्रम मत पालो। जब जीवन की अंतिम बेला आएगी, उस समय कोई काम नहीं आना है। सद्गुरु चरणदास सहजो से कहते हैं कि संतों की संगत ही वास्तविक शरण है।
- पुस्तक : सहजप्रकाश (पृष्ठ 92)
- रचनाकार : सहजोबाई
- प्रकाशन : श्रीवेंकटेश्वर स्टीम् प्रेस, बंबई
- संस्करण : 1922
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