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हमारे गुरु पूरण दातारा

hamare guru puran datara

सहजोबाई

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हमारे गुरु पूरण दातारा

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    हमारे गुरु पूरण दातारा।

    अभयदान दीनन को दीन्हें कीन्हैं भवजल पारा।

    जन्म के फंदनि काटे यम की बंध निवारा।

    रंक हते सो राजा कीन्हें हरि धन दिये अपारा॥

    देवें ज्ञान भक्ति पुनि देवें योग बतावन हारा।

    तन मन वचन सकल सुखदाई हिरदे बुध उजियारा॥

    सब दुख गंजन पातक भंजन रंजत ध्यान विचारा।

    साजन दुर्जन जो चलि आवै एकहि दृष्टि निहारा॥

    आनंदरूप स्वरूप मई है लिप्त नहीं संसारा।

    चरणदास गुरु सहजो करै नमो बारंबारा॥

    सहजोबाई कहती हैं कि हमारे गुरु श्रेष्ठ दानी या पूर्ण दाता हैं। उन्होंने दीन भक्तजनों को अभय-दान दिया और उन्हें इस संसार-सागर से पार किया। उन्होंने जन्म-जन्म के माया-मोह के बंधन अथवा कर्म-बंधन काटे तथा शिष्यों को यमराज के बंधनों से छुड़ाया। उन्होंने ग़रीबों को राजा अर्थात् वैभव-सम्पन्न बनाया और ईश्वरीय भक्ति रूपी अपार धन दिया। वे गुरुजी सभी को ज्ञान देते हैं, फिर भक्ति देते हैं तथा योग-साधना का तरीक़ा बताते हैं। वे शरीर, मन एवं वाणी से सदा सुख देने वाले तथा हृदय बुद्धि में ज्ञान का उजाला फैलाने वाले हैं। वे सब दुःखों को समाप्त करने वाले हैं। उनके पास सज्जन तथा दुर्जन जो भी जाता है, वे उन्हें समान दृष्टि से देखते हैं। समान दृष्टि से ज्ञान-दान कर उपकार करते हैं। वे आनंदमय तथा ईश्वरीय स्वरूपमय हैं, संसार के माया-मोह आदि बंधनों से लिप्त नहीं हैं। सहजो कहती हैं कि मेरे गुरु चरणदास जी उन गुणों से मंडित हैं, मैं बार-बार उन्हें प्रमाण करती हूँ।

    स्रोत :
    • पुस्तक : सहजप्रकाश (पृष्ठ 87)
    • रचनाकार : सहजोबाई
    • प्रकाशन : श्रीवेंकटेश्वर स्टीम् प्रेस, बंबई
    • संस्करण : 1922

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