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साहब मेटो चूक हमारी

sahab meto chook hamari

धनी धरमदास

धनी धरमदास

साहब मेटो चूक हमारी

धनी धरमदास

और अधिकधनी धरमदास

    साहब मेटो चूक हमारी॥टेक॥

    बार-बार मोहिं डंड भयो है, चूक भई अति भारी॥

    अब हम आये निकट तुम्हारे, अब मो तनहिं निहारो।

    करुनामय तुम नाम धराये, तुम समरथ अब मेरो॥

    ऐसी बिपति भई मोहिं ऊपर, कोइ हीत हमारो।

    तरसत जीव रहै निस बासर, जानि जनहिं तुम दौ रौ॥

    अब की चूक छिमा कर साहेब, अब सनमुख ह्वै हेरो।

    तुम सतगुरु सकल सुख दाता, सबद पान तै तारौ॥

    धरमदास बिनवै कर जोरी, करौं बंदगी तेरो।

    स्रोत :
    • पुस्तक : हिंदी के जनपद संत (पृष्ठ 251)
    • संपादक : जगजीवन राम
    • रचनाकार : धरमदास
    • प्रकाशन : मोेतीलाल बनारसी, दिल्ली
    • संस्करण : 1963

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