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पकड़ि पकड़ि मन को बैठाइ

pakDi pakDi man ko baiThaa.i

बखना

बखना

पकड़ि पकड़ि मन को बैठाइ

बखना

और अधिकबखना

    पकड़ि पकड़ि मन को बैठाइ, इहि विधि हरि कै सुमिरण लाइ॥टेर॥

    मन दौड़े देहीं बैसांणी, आसण इसा होइ रे प्राणी।

    मन फोरा देही पांगुली, भो सागर तिरवा की रली॥

    जब लग मन वैसे नहिं ठाइ, तौ लग तिल भरि तिरयां जाइ।

    मन जाते का करो गरासा, 'बखना' सतगुर कह्या संदेसा॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : बखना जी और उनकी बाणी (पृष्ठ 162)
    • संपादक : मंगलदास स्वामी
    • रचनाकार : बखना
    • प्रकाशन : श्री लक्ष्मीराम ट्रस्ट, जयपुर
    • संस्करण : 1937

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