ओं तंते मंते जोत जगाई
on tante mante jot jagai
ओं तंते मंते जोत जगाई, वाके वचने काया उपाई।
मीठो थां सागर सोस्यो, खारो कियो थांही (छाई)।
ईसरदेव हुआ निरकारा, इसी परापती पाई।
[ईसरदेव हुयो निरवाळो, इसी फलापती पाई]।
पैलै दीपक चंदो सिरज्यो, सिरजी सिस्ट सुवाई।
[सरजी जोत सुवाई]।
दूजै दीपक सूरज सिरज्यो, सूरज जोत सवाई।
[गोरख जाग जगाई]।
अंगां हूंतां ईसर गौरां सिरज्या, गोरख कळा जगाई
[उमत देव (जेह) उपाई]।
एकै हाथ न ताळी बाजै, रळ दोय काया उपाई [पकाई]।
धिन है ज्ञानी ज्ञान बे साझा, काची काया उपाई [पकाई]।
ईसर दैत’र देवता सिरज्या, तां कीवि उपवाई।
दैतां टोटो देवां लाहो, कहि न मानी काई।
मछ कै रूप संखासर छेद्यो, सागर कियो छाई।
मदरूपी मध कीचक छेद्यो, कंटक खाधो काई।
कछ कै रूप हुय झबरख मार्यो, वो गयो बिण आई।
वारा रूप कळंदर गा’यो, सतजुग वार कुहाई।
कोड़े पन्द्रा टोटै दीनी, पांचां धर पौंचाई।
पांचां (रो) मांझी है पहळादो, पहळादैनै मान बडाई।
थे उण राजा री करणी हालो, जो मत पार लंघो मोरा भाई।
सो गुरु सदा सिंवर ओ प्राणी, (जिण) थांरी उमत आव उपाई।
उमत घटती वाचा बधती, जै गुरु गोरख जाग जगाई।
गुरु प्रसादे गोरख वचने, (श्रीदेव) जसनाथ(जी) बांच सुणाई।
- पुस्तक : सबद ग्रंथ (पृष्ठ 166)
- संपादक : सूर्य शंकर पारेक
- रचनाकार : जसनाथ
- प्रकाशन : श्री देव जसनाथ सिद्धाश्रम (बाड़ी) धर्मनाथ ट्रस्ट बीकानेर (राज.)
- संस्करण : 1996
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