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हमारो वृंदावन उर और

hamaro wrindawan ur aur

भगवत रसिक

भगवत रसिक

हमारो वृंदावन उर और

भगवत रसिक

और अधिकभगवत रसिक

    हमारो वृंदावन उर और।

    माया काल तहाँ नहिं व्यापै, जहाँ रसिक सिरमौर॥

    छूटि जाति सत-असत-वासना, मन की दौरादौर।

    ‘भगवतरसिक' बतायौ, श्रीगुरु, अमल अलौकिक ठौर॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : ब्रजमाधुरी सार (पृष्ठ 231)
    • रचनाकार : भगवतरसिक
    • प्रकाशन : हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग
    • संस्करण : 2002

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