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ओं पैलां सिंभू आप उपन्ना

on pailan simbhu aap upanna

जसनाथ

जसनाथ

ओं पैलां सिंभू आप उपन्ना

जसनाथ

ओं पैलां सिंभू आप उपन्ना, जप रैया निरकारूं।

जोग छत्तीसूं न्यारा रहिया, कुहाया एकैकारूं।

जोग छतीसां निरंजण साझ्या, किया है ओंकारूं।

धरती माता नीवैं रचाई, सीस रच्यो गैणारूं।

जैंरा पौन’र पाणी सिरज्या, चांद सूरज दीदारूं।

ब्रह्मा विष्न महेसर हुआ, कियो वेद विचारूं।

वेद कतेव ब्रह्मा साझ्या, किया ज्ञान पसारूं।

मंडळाई रो पड़दो लियो, रूप रच्या ओतारूं।

मछ कछ हुंता ईसर हुवा, आप उपावणहारूं।

ईसर सिरज्या दैत’र देवता, जां कियो अहंकारूं।

दैतां टोटो देवां लाहो, कही मानी कारूं।

मछ के रूप संखासर छेद्यो, सागर किया खारूं।

कछ कै रूप हुय झबरख मार्यो, कंटक खाधो काईं।

कुरम रूप कळंदर गाह्यो, मार्यो घात सिंघारूं।

सतजुग आयो हिरणा ढायो, छळ मांड्यो छळकारूं।

सिंह्या मिंह्या सर्वे पाले, पाल्या मुहुरत वारू।

निन्नाणवे कोड़ गढ हाके ढाया, नरसिंघ री जैकारूं।

सतजुग में हिरणाकस छेद्यो, तीखी नैर पलारूं।

सतजुग वरत्यो त्रेता आयो, त्रेता आयो बावन कुहायो

भिखै कियो भिथारूं।

बावन रूप छळ्यो बळराजा, देखाळयो चटकारूं।

दस डालम उण सुगड़ो छेद्यो, दोड़्या कोहर वारूं।

हिंसू अर पारधिया दाब्या, मांहे कीर कहारूं।

खुद खुदैया भीतर दाव्या ऊपर फेरी छारूं।

सुगड़ो अरज करै सायब नै, स्वामी सुणो पुकारूं।

बो’ळा किरत किया उण राजा, नांव रैयो पण मोख पायो

अगत्यो गयो गिंवारूं।

भागीरथ सिव संकर सेयो, ल्यायो गंग सुवारू।

जटा मुकुट सोवै जां हरनै, वां कियो मुकुट जळ आप अपारूं।

भो मोचण हाली भू ऊपर, जद तद गंगा सोरम पारूं।

भागीरथ कुळ सुरग सिधावै, दस डालम सिंभू जैकारूं।

परसारूपी सैंसा अरजन छेद्यो, मार्यो खड़ग उभारूं।

घर दसरथ रै जद ओतरियो, लाखे लखण कुंवारूं।

लंका मार्य विभीषण थरप्यो, जद राघो जैकारूं।

बाण संजोय दुसमणनै बो’यो दहसिरदाणूनै मार’र लायो छारूं।

पैलाणे गुरु मुहुरत भेज्या, पाछै लाखण कुंवारूं।

जपो ईसर ध्यावो गोरख, आप उपावणहारूं।

त्रेता बरत्यो द्वापर आयो, द्वापर आयो का’न कुहायो

वासक रो असवारूं।

का’न कळा कंसासर छेद्यो नूरे लखण कुंवारूं।

बुध रूपी पांचू पांडू सिरज्या, जांसूं ठाकुर हेत पियारूं।

कोड़ अठारा कैरू छेद्या, जां कियो अहंकारूं।

द्वापर वरत्यो कळजुग आयो, कळजुग नर निकळंकी कुहायो

काळंग रिप किरतारूं।

काळंग रो जी' सैनक जासी, छेदै संत उपकारूं।

थोड़ा थोड़ा हसम घालै, नाचै धर गैणारूं।

गणा मंडळ में तारा नाचै, वणी अठारा भारूं।

लंक विलंका मेर मंदागिर, उदगर नाचै मेर तणा हथियारूं।

रजिया खोजी हैद्र होजी बांचै है ओतारूं।

जाट कुळी में कांन भणीजै, क्रिसन कळा किरतारूं।

भाग थळी ओतार लियो है, कुण लह अंत’र पारूं।

जुगां जुगां रा देवै निवेड़ा, अबच बचावणहारूं।

खोजिया खोजी रेहु रहोजी, बांचै है ओतारूं।

पांच सात नौ आगै तार्या कळजुग बारा तारूं।

बारां रो माझी है निकळंकी, निकळंक री जैकारूं।

गुरु प्रसादे गोरख वचने, (श्रीदेव) जसनाथ (जी)

बांचै निज सारां ही सारूं।

स्रोत :
  • पुस्तक : सबद ग्रंथ (पृष्ठ 164)
  • संपादक : सूर्य शंकर पारेक
  • रचनाकार : जसनाथ
  • प्रकाशन : श्री देव जसनाथ सिद्धाश्रम (बाड़ी) धर्मनाथ ट्रस्ट बीकानेर (राज.)
  • संस्करण : 1996

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