भाँति-भाँति के भाँड़े गढ़े
bhanti bhanti ke bhanDe gaDhe
भाँति-भाँति के भाँड़े गढ़े, ऐसौ विधना कुम्हार।
एकन उत्तम न्यामत, एकन मध्यम न्यामत,
एकन निकृष्ट न्यामत, एकन राखौ खाली कर मिक़दार॥
एकन देत रीझत, एकन लेत रीझत, एकन कौं करोरन दिये,
एकन कौं हाथ खप्पर दिये, माँगत भीख द्वार-द्वार।
एकन कौं नरक, एकन कौं सरग देत,
‘तानसेन’ प्रभु रच्यौ संसार॥
- पुस्तक : संगीत-सम्राट तानसेन (पृष्ठ 73)
- संपादक : प्रभुदयाल मीतल
- रचनाकार : तानसेन
- प्रकाशन : साहित्य संस्थान
- संस्करण : 1960
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