प्रियतम नाथ बेगि घर आवै
ptiyatam naath vegi ghar aavae
प्रियतम नाथ बेगि घर आवै।
तव वियोग-दावानल तापति, मम उर आय सिरावै॥
तनक होत दुःख कबहुँ मोर तन, तुम अति होत दुखारी।
करत विविध उपचार हरत दुःख रहे सदा सहचारी॥
केतिक रैनि दिवस अब बीते, हों दुःख पावति भारी।
अस कास निठुर भए निरमोही, तुम निज वानि बिसारी॥
छमहु दोष अग्यात-ग्यात सब, मोहि आपनी जानी।
तजहु रोष उर द्रवहु दया करि, निज पद दासी मानी॥
जीवन धन तुम सरवस मेरे, जग इक आस तिहारी।
मो रतनावलि उभय लोक गति, पति तुम ही दुख हारी॥
- पुस्तक : रत्नावली (पृष्ठ 54)
- संपादक : वेदव्रत शास्त्री
- रचनाकार : रत्नावली
- प्रकाशन : उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान
- संस्करण : 1990
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