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सुघर बना संग जागी

sughar bana sa.ng jaagii

कुंभनदास

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सुघर बना संग जागी

कुंभनदास

और अधिककुंभनदास

    सुघर बना संग जागी मनमोहन सों अनुरागी।

    उर सों उर लपटाय प्रीतम सों अधर सुधा पीवन लागी।

    आलिंगन चुंबन रसक्रीड़ा पिय के प्रेम रस पागी।

    हिंमत मनाया लाई कुंभन प्रभु सों अब आई ऋतु वसंत सुहाई॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : अष्टछाप के कवि (पृष्ठ 87)
    • संपादक : हरगुलाल
    • रचनाकार : कुम्भनदास
    • प्रकाशन : प्रकाशन विभाग, भारत सरकार
    • संस्करण : 2008

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