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केते दिन जु गये बिनु देखैं

kete din ju gaye binu dekhain

कुंभनदास

कुंभनदास

केते दिन जु गये बिनु देखैं

कुंभनदास

और अधिककुंभनदास

    केते दिन जु गये बिनु देखैं।

    तरुन किसोर रसिक नँद-नंदन, कछुक उठति मुख रेखैं॥

    वह सोभा, वह कांति वदन को, कोटिक चंद बिसेखैं।

    वह चितवन, वह हास मनोहर, वह नटवर वपु भेखैं॥

    स्यामसुंदर-सँग मिलि खेलन की आवति हिये अपेखैं।

    ‘कुंभनदास', लाल गिरधर बिनु जीवन जनम अलेखैं॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : ब्रजमाधुरी सार (पृष्ठ 145)
    • संपादक : वियोगी हरि
    • रचनाकार : कुंभनदास
    • प्रकाशन : हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग
    • संस्करण : 2002

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