करत गोपाल यमुना जल क्रीड़ा
karat gopaal yamuna jal kriiDa
करत गोपाल यमुना जल क्रीड़ा।
सुर नर असुर थकित भये देखत बिसर गई तनमन जिय पीड़ा॥
मृगमद तिलक कुंकुम चंदन अगर कपूर वास बहु भुरकन।
कुच युग मग्न रसिक नंदनंदन कमल पाणि परस्पर छिरकन॥
निर्मल शरद कमलाकृत शोभा बरखत स्वाति बूंद जलमोती।
परमानंद कंचन मणि गोपी मरकत मणि गोविंद मुख जोती॥
- पुस्तक : अष्टछाप के कवि (पृष्ठ 112)
- संपादक : हरगुलाल
- रचनाकार : परमानंददास
- प्रकाशन : प्रकाशन विभाग सूचना और प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार
- संस्करण : 2008
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.