अब तो अजपा जपु मन मेरे
ab to ajpa japu man mere
अब तो अजपा जपु मन मेरे॥
सुर नर असुर टहलुवा जा के, मुनि गंधर्व जा के चेरे॥
दस अवतार देखि मत भूलो, ऐसे रूप घनेरे॥
अलख पुरुष के हाय बिकाने, जब तैं नैन निहारे॥
अविगत अगम अगोचर अवधू संग फिरत हैं तेरे॥
कह मलूक तू चेत अचेता, काल न आवै नेरे॥
- पुस्तक : संत कवि मलूकदास (पृष्ठ 75)
- संपादक : त्रिलोकी नारायण दीक्षित
- रचनाकार : मलूकदास
- प्रकाशन : अखिल भारतीय संत मलूकदास स्मारक समिति, प्रयाग
- संस्करण : 1965
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