आए जोग सिखावन पाँडे
aaye jog sikhawan panDe
आए जोग सिखावन पाँडे।
परमारथी पुराननि लादे ज्यों बनजारे टाँड़े॥
हमरी गति पति कमलनयन की जोग सिखैं ते राँड़े।
कहौ मधुप, कैसे समायँगे एक म्यान दो खाँड़े।
कहु षटपट, कैसे खैयतु है हाथिन के संग गाड़े।
काकी भूख गई बयारि भखि बिना दूध घृत डाँड़े॥
काहे जो झाला लै मिलवत, कौन चोर तुम डाँड़े।
सूरदास तीनों नहि उपजत धनिया धान कुम्हाँड़े॥
गोपियाँ उद्धव पर तंज़ कसते हुए परस्पर कह रही हैं हे सखी, देखो तो योगशास्त्र सिखाने के लिए पंडित जी आ गए। ये परमार्थी पुराणों के ज्ञान को इस प्रकार लादे हुए हैं जैसे बनजारे बैलों पर सौदा लादे घूमते फिरते हैं। किंतु हमारे लिए तो प्रियतम श्रीकृष्ण ही शरण हैं और उन्हीं से हमारी प्रतिष्ठा तथा मर्यादा है। योग तो वे ही सीखेंगी जो राँड हैं। हे भ्रमर, यह तो बताओ कि एक म्यान में दो तलवारें कैसे आ सकती हैं! हे भ्रमर कहो तो हाथियों के साथ गन्ने के टुकड़े कैसे खाए जा सकते हैं? हमें यह तो बताओ कि बिना दूध, घृत और मीठी रोटी खाए मात्र हवा भक्षण करने से किसकी भूख मिट सकती है? अतः तुम व्यर्थ में बकवाद क्यों कर रहे हो और हमने ऐसा कौन-सा अपराध किया है जिसके लिए तुमने हमें अपनी कठोर और नीरस बातों से दंडित किया? हे उद्धव, तुम्हें जानना चाहिए कि धनिया, धान और कुष्मांड ये तीनों एक ही साथ नहीं उत्पन्न हो सकते। तात्पर्य यह है कि निर्गुणोपासना और सगुणोपासना एक साथ नहीं हो सकती।
- पुस्तक : भ्रमरगीत सार (पृष्ठ 73)
- रचनाकार : आचार्य रामचंद्र शुक्ल
- प्रकाशन : लोकभारती
- संस्करण : 2008
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