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कितना यांत्रिक?

kitna yaa.ntrik?

उमाकांत मालवीय

उमाकांत मालवीय

कितना यांत्रिक?

उमाकांत मालवीय

और अधिकउमाकांत मालवीय

    नाकाफ़ी लगती है हर ज़बान

    कोई अक्षर

    कोई शब्द किसी भाषा का

    पूरा-पूरा कैसे व्यक्त करे

    क्या कुछ कहता मन का बियाबान?

    एक रहा आने की, जाने की

    घिसे-पिटे पंगु कुछ मुहावरे

    दीमक की चाटी कुछ शक्लें हैं

    बदहवास कुछ, कुछ-कुछ बावरे।

    कोई कितना ज़हर पिए कहो

    नीला पड़ गया टँगा आसमान।

    बाबा आदम से गुम हुए सभी

    तोड़ते ज़मीन कुछ तलाशते।

    रूढ़ हो गईं सारी मुद्राएँ

    अर्थ जरा-जर्जर-से खाँसते।

    कितना यांत्रिक! आदत-सा लगता

    डूब रहा सूरज या हो विहान।

    चाहे जितना कह दो फिर भी तो

    रह जाता है कितना अनकहा।

    कितनी औपचारिक हैं सिसकियाँ

    कितना रस्मी लगता कहकहा।

    अगुआता घर-घर भुतहा भविष्य

    और अप्रस्तुत लगता वर्तमान।

    स्रोत :
    • पुस्तक : नवगीत दशक (पृष्ठ 90)
    • संपादक : शंभुनाथ सिंह
    • रचनाकार : उमाकांत मालवीय
    • प्रकाशन : पराग प्रकाशन
    • संस्करण : 1982

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