धर्मवीर भारती का पत्र जगदीश चतुर्वेदी के नाम
Dharmvir Bharti Ka Patra Jagdish Chaturvedi Ke Naam
धर्मवीर भारती
Dharmavir Bharati
धर्मवीर भारती का पत्र जगदीश चतुर्वेदी के नाम
Dharmvir Bharti Ka Patra Jagdish Chaturvedi Ke Naam
Dharmavir Bharati
धर्मवीर भारती
और अधिकधर्मवीर भारती
प्रिय भाई,
3 जून, 1971
आपकी लंबी कविता मिली। इधर 27 जून तक के अंक की सामग्री प्रेस जा चुकी है इसलिए बहुत कोशिश करके भी इतनी बड़ी कविता के लिए अब स्थान निकाल पाना संभव नहीं है, क्योंकि 20 जून के अंक में भी एक लंबी कविता इसी से संबंधित विषय पर प्रेस में जा चुकी है।
आपने मुझसे कविता पर राय पूछी है। मेरी स्पष्ट सम्मति यह है कि इस कविता का आपके उस सारे चिंतन और सिद्धांत से कोई मेल नहीं बैठता, जिसका ढिंढोरा आप पिछले दस वर्ष से पीट रहे हैं। आपकी कविता की पहली पंक्ति है, ‘‘मैं बहुत दिन से महसूस कर रहा था यह सुगबुगाहट’’। मेरे विचार से यह पंक्ति सरासर झूठ है। आपकी पिछली कविताओं से यह कहीं प्रकट नहीं होता कि आप उस क्रांतिकारी सुगबुगाहट को कहीं महसूस कर रहे हैं जिससे प्रेरित होकर बांग्ला देश के युवा विद्रोहियों ने सारी दुनिया को हिला दिया। आशा है, मेरी स्पष्टवादिता से नाख़ुश न होंगे। आपने राय नहीं पूछी होती तो मैं नहीं लिखता।
आपका
भारती
- पुस्तक : अक्षर अक्षर यज्ञ
- रचनाकार : धर्मवीर भारती
- प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
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