अरुण तेज अति रूप
aru.n tej ati ruup
अरुण तेज अति रूप बरण उनको है न्यारो।
तिमिर नाश परकाश जगत को सिरजनहारो॥
देव आदि नरभूप ध्यान उनहीं को धारो।
प्रलय पवन जल नाश भये इनहीं ते सारो॥
बैताल कहै सुनु विक्रम सकल लोक जिनते तरत।
भानु प्रतापी जानकर सो नमस्कार सूर्यहिं करत॥
- पुस्तक : कुण्डलियाँ गिरिधरराय (पृष्ठ 35)
- रचनाकार : बैताल
- प्रकाशन : नवलकिशोर प्रेस , लखनऊ
- संस्करण : 1922
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