सीस उतारै हाथ से
siis utaarai haath se
सीस उतारै हाथ से सहज आसिकी नाहिं॥
सहज आसिकी नाहिं खाँड़ खाने को नाहीं।
झूठ आसिकी करै मुलुक में जूती खाही॥
जीते जो मरि जाय करै ना तन की आसा।
आसिक को दिन रात रहै सूली पर बासा॥
मान बड़ाई खोय नींद भर नाहीं सोना।
तिल भर रक्त न मांस नहीं आसिक को रोना॥
पलटू बड़े बेकूफ वे आसिक होने जाहिं।
सीस उतारै हाथ से सहज आसिकी नाहिं॥
आत्म-प्रेम सहज नहीं होता, अपितु अपने हाथ से अपना सिर उतारकर सद्गुरु के चरणों में रख देना होता है। यह मीठा खाना नहीं है कि गप से मुख में डाल लिया। जो मनुष्य साधुता से झूठा प्रेम करेगा वह संसार में जूते खाएगा। आत्म-साक्षात्कार के लिए प्रेम करना है जीते जी मर जाना, शरीर की आशा छोड़ देना। आत्म-साक्षात्कार के प्रेमी का निवास सदैव संयम की शूली पर होता है। वह मन को संसार से दूर रखकर उसे कसे रहता है। वह मान-बड़ाई को खो देता है। वह एक क्षण भी असावधान नहीं होता। वह अपने शरीर के मोह में नहीं रहता। सच्चा आशिक रोता नहीं। वह कभी चिंतित नहीं होता, अपितु सदैव प्रसन्न रहता है। पलटू साहब कहते हैं कि वे बड़े बेवकूफ़ हैं जो ऊपरी मन से आत्म-कल्याण के प्रेमी बनने जाते हैं। यह तो अपना सिर अपने हाथों से उतारकर जमीन पर रख देना है। प्रेमी होना सहज नहीं है।
- पुस्तक : पलटू साहेब की बानी (पृष्ठ 56)
- संपादक : अभिलाषा दास
- रचनाकार : पलटू
- प्रकाशन : कबीर आश्रम, कबीर नगर, इलाहाबाद
- संस्करण : 2012
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