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गल में कंता पहर कर

gal mein kanta pahar kar

सगरामदास

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गल में कंता पहर कर

सगरामदास

और अधिकसगरामदास

    गल में कन्ता पहर कर, निसदिन रहूँ उदास।

    संपत एक शरीर है, रखूँ तिन की आस॥

    रखूँ तिन की आस, बास सूने घर करहूँ।

    कहा पर्वत बन बाग, निडर हुय निसँक बिचरहूँ॥

    राम नाम से प्रीति कर, सिमरूँ श्वास-उश्वास।

    गल में मैं कंता पहर, निसदिन रहूँ उदास॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : कल्याण पत्रिका (संतबानी अंक) (पृष्ठ 432)
    • संपादक : हनुमान प्रसाद पोद्दार
    • रचनाकार : सगरामदास
    • प्रकाशन : गीता प्रेस गोरखपुर
    • संस्करण : जनवरी 1955

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