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अम्मा मेरा दिल लगा

amma mera dil laga

पलटू

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अम्मा मेरा दिल लगा

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    अम्मा मेरा दिल लगा मुझ से रहा जाय॥

    मुझ से रहा जाय बिना साहिब को देखे।

    जान तसद्दुक करौं लगै साहिब के लेखे॥

    मुझको भया है रोग जायगा जीव हमारा।

    एकर दारू यही मिलै जो प्रीतम प्यारा॥

    पड़ा प्रेम जंजाल जिकिर सीने में लागी।

    मैं गिरि परी बेहोस लोक की लज्जा भागी॥

    पलटू सतगुरु बैद बिन कौन सकै समझाय।

    अम्मा मेरा दिल लगा मुझ से रहा जाय॥

    हे माता! मेरा मन आत्मा-पति में लग गया है। मेरा उनके बिना रहना कठिन है। बिना आत्म-साक्षात्कार के अब मैं चैन से नहीं रह सकती। आत्म-साक्षात्कार होने पर मैं अपनी जान उनको समर्पित कर दूँगी। मुझे विरह की व्याधि हो गई है। इसी में मेरा जीवन जाएगा। इस व्याधि से छूटने के लिए एक ही दवा है कि मेरा प्रियतम प्यारा आत्मा मुझे मिल जाए। अब मेरे दिल में प्रेम का जंजाल पड़ गया है और मेरे दिल में निरंतर आत्मचिंतन की धारा लगी है। मैं उसी नशे में अचेत होकर संसार से छूटकर गिर पड़ी हूँ। अब मेरी लोक की लज्जा भाग गई है। पलटू साहेब कहते हैं कि सदगुरु वैद्य के बिना मेरी चिकित्सा कौन कर सकेगा? मुझे कौन बोध देगा? हे स्वरूपस्थिति रूपी अम्मा! मेरा दिल प्रियतम आत्मदेव में लगा है। उनके बिना मुझसे रहा नहीं जाता है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : पलटू साहेब की बानी (पृष्ठ 55)
    • संपादक : अभिलाषा दास
    • रचनाकार : पलटू
    • प्रकाशन : कबीर आश्रम, कबीर नगर, इलाहाबाद
    • संस्करण : 2012

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