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सरवर नीर न पीवहीं

sarwar neer na piwhin

महापात्र नरहरि बंदीजन

महापात्र नरहरि बंदीजन

सरवर नीर न पीवहीं

महापात्र नरहरि बंदीजन

और अधिकमहापात्र नरहरि बंदीजन

    सरवर नीर पीवहीं, स्वाति बूँद की आस।

    केहरि कबहुँ तृन चरै, जो ब्रत करै पचास॥

    जो ब्रत करै पचास, विपुल गज्जूह बिदारै।

    धन ह्वै गर्ब करै, निधन नहिं दीन उचारै॥

    ‘नरहरि’ कुल सुभाव, मिटै नहिं जब लग जीवै।

    बरु चातक मरि जाय, नीर सरवर नहिं पीवै॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : हिंदी नीति-काव्य-धारा (पृष्ठ 22)
    • संपादक : भोलानाथ तिवारी
    • रचनाकार : महापात्र नरहरि बंदीजन
    • प्रकाशन : किताब महल, इलाहाबाद
    • संस्करण : 1984

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