पिसना पीसै राँड़ री
pisna piisai raa.nD rii
पिसना पीसै राँड़ री पिउ पिउ करै पुकार॥
पिउ पिउ करै पुकार जगत को प्रेम दिखावै।
कहवै कथा पुरान पिया को तनिक न भावै॥
खिन रोवै खिन हँसै ज्ञान की बात बतावै।
आप न रीझै भाँड़ और को बैठि रिझावै॥
सुनै न वाकी बात तनिक जो अंतर जानी।
चाहै भेटा पीव चलै न सुपथ रहानी॥
पलटू ऊपर से कहै भीतर भरा बिकार।
पिसना पीसै राँड़ री पिउ पिउ करै पुकार॥
विधवा चक्की से आटा पीसते हुए पीउ-पीउ पुकारती है। अर्थात आत्मा रूपी परमात्मा का बोध हुए बिना पाखंडी मनुष्य राग-द्वेष की चक्की चलाता है और बाहर परमात्मा की चर्चा करता है और संसार के लोगों में यह प्रदर्शित करता है कि मैं परमात्मा का बड़ा प्रेमी हूँ। वह परमात्मा के गुणानुवाद में पुराणों की कथा करता है, परंतु उसकी बात परमात्मा को तनिक भी अच्छी नहीं लगती—अंतरात्मा प्रसन्न नहीं होता। ऐसे लोग अपनी भगवत-भक्ति दिखाने के लिए झूठी विरह भावना का प्रदर्शन करते हैं। वे क्षण में रोते हैं, क्षण में हँसते हैं और क्षण में ज्ञान की बातें करते हैं। नाच-नाटक का मसखरा स्वयं तो नहीं रीझता है, अन्य को हावभाव करके रिझाता है। जो अंतरात्मा की बात जानते और कहते हैं उनके निर्णय वचन ऐसे लोग नहीं सुनना चाहते। वे चाहते तो हैं कि प्रियतम परमात्मा में लीन हो जाएँ, किंतु सदाचार के पथ पर न चलते हैं और न अंतर्मुख रहनी अपनाते हैं। पलटू साहेब कहते हैं कि ऐसे लोग भक्ति-ज्ञान की बातें केवल दिखावे के लिए करते हैं, किंतु उनके मन में विषय-वासना के विकार भरे रहते हैं। विवेकहीन मनुष्य राग-द्वेष में डूबा रहता है और ऊपर-ऊपर आत्मा-परमात्मा का प्रेम प्रदर्शित करता है।
- पुस्तक : पलटू साहेब की बानी (पृष्ठ 33)
- संपादक : अभिलाषा दास
- रचनाकार : पलटू
- प्रकाशन : कबीर आश्रम, कबीर नगर, इलाहाबाद
- संस्करण : 2012
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.