Font by Mehr Nastaliq Web

बधिकौ तो सुरजन सखी

badhikau to surjan sakhi

अक्षर अनन्य

अन्य

अन्य

अक्षर अनन्य

बधिकौ तो सुरजन सखी

अक्षर अनन्य

और अधिकअक्षर अनन्य

    बधिकौ तो सुरजन सखी, दुरजन महा मुरार।

    वहि मारत जिय ना रहो, यहि अधमर कर डार॥

    यहि अधमर कर डार, मार सर बहुरि काढ़ै।

    उसुसत ससित सरीर, प्रेमपूरन दुख बाढ़ै॥

    यहि दुख अछिरअनिन्न, कोटि मरबे ते अधिकौ।

    कृष्ण कठोरहि सखी पाइ, सकिहै नहिं बधिकौ॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : प्रेमदीपिका, महात्मा अक्षरअनन्य कृत (पृष्ठ 11)
    • संपादक : राय बहादुर लाला सिताराम
    • रचनाकार : अक्षर अनन्य
    • प्रकाशन : हिंदुस्तानी एकेडेमी, यू.पी
    • संस्करण : 1878

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY