अंत जु आए जगत् में
ant ju aaye jagat mein
अंत जु आए जगत् में, हरि सुमिरण के काज।
ह्यां कछु कीया और ही, नेक न आई लाज॥
नेकन आई लाज, साज सब खोटे कीन्हे।
सदा रहे अज्ञान, रामघट में नहिं चीन्हे॥
जैहौ जन्म गँवाइके, पछितावा रहि जाय।
चरणदास कहे सहिजिया, कहा कियो तनु पाय॥
इस संसार में मनुष्य का अंतिम लक्ष्य नाम सुमिरन है। उसे मनुष्य देह इसीलिए मिली है। लेकिन तुम यहाँ आकर कुछ और ही करने लगे अर्थात संसार के मायाजाल में फंसकर व्यर्थ के कामों में उलझ गए, ऐसा करते तुम्हें लाज नहीं आई? अज्ञान बने रहे और खोटे काम किए। परमात्मा की भक्ति नहीं की। चरणदास सहजो से कहते हैं कि मनुष्य जन्म पाया भी और गंवाया भी, और अंत में अगर पछतावा रह जाए तो मानव देह पाकर क्या किया!
- पुस्तक : सहजप्रकाश (पृष्ठ 84)
- रचनाकार : सहजोबाई
- प्रकाशन : श्रीवेंकटेश्वर स्टीम् प्रेस, बंबई
- संस्करण : 1922
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