रास पंचाध्यायी (चौथा अध्याय)
ras panchadhyayi (chautha adhyay)
यहि बिधि प्रेम-सुधानिधि में अति बढ़ी कलोलैं।
है गईं बिह्वल बाल लाल सों अलबल बोलें॥
तब तिनहीं में तें निकसे नंद नंदन पिय यौं।
दृष्टि बंध कै दुरै बहुरि प्रगटै नटवर ज्यौं॥
पीत बसन बनमाल बनी मंजुल मुरली हथ।
मंद मधुरतर हंसत निपट मनमथ के मनमथ॥
पियहिं निरखि तिय वृंद उठीं सब इकै बार यों।
परि घट आए प्रान बहुरि उझकत इंद्री ज्यौं॥
महा छुधित कों जैस असन सों प्रीति सुनी है।
ताहू ते सतगुनी सहेस गुनि कोटि गुनी है॥
कोउ चटपटि सों उर लपटीं कोउ कर बर लपटीं।
कोउ गल लपटी कहति भलैं भलैं कान्हर कपटी॥
ज्यों अनेक जोगीस्वर हिय में ध्यान धरत हैं।
इकहि बेर इक मूरति सब कों सुख बितरत हैं॥
कोटि-कोटि ब्रह्मांड जदपि इकली ठकुराई।
ब्रज-देबिन की सभा सांचरे अति छवि पाई॥
त्यों सब गापिन सनमुख सुंदर श्याम बिराजै।
ज्यों नवदलनि मंडलहिं कमल कणिका भ्राजै॥
जदपि जगत-गुरु नागर जसुमति नंद-दुलारे।
पै गोपिन के प्रेम अग्र अपने मुख हारे॥
तब बोले पिय नव किसोर हम ऋनी तिहारे।
अपुने हिय तें दूरि करौ सब दोस हमारे॥
सकल विश्व अप बस करि मो माया सोहति है।
मोह मई तुम्हरी माया सोइ मोहिं मोहति है॥
- पुस्तक : अष्टछाप कवि : नंददास (पृष्ठ 63)
- संपादक : सरला चौधरी
- रचनाकार : नंददास
- प्रकाशन : प्रकाशन विभाग सूचना और प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार
- संस्करण : 2006
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