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महाराणा प्रताप

maharana pratap

जगन्नाथदास रत्नाकर

जगन्नाथदास रत्नाकर

महाराणा प्रताप

जगन्नाथदास रत्नाकर

और अधिकजगन्नाथदास रत्नाकर

    साजि सेन समर-सपूत राजपूतनि की,

    बिक्रम अकूत अभूत प्रन ठाने हैं।

    कहै रतनाकर स्वदेस पूत राखन कौ,

    गाजि सहबाज के दराज साज भाने हैं॥

    कुंत करवार सौं प्रचारि करि वार दारि,

    केते दिए डारि केते भभरि भगाने हैं।

    प्रबल प्रताप-ताप-दाप सौं हवा है सद्द,

    बद्दल समान मुग़लद्दल बिलाने हैं॥

    म्लेच्छनि के दीन कौ जलाल पायमाल करे,

    रूम के हिलाल-भाल नाल थिर थापै है।

    कहै रतनाकर अरीनि-उर हार देत,

    चारु चंद्रहार उर्बरा कैं उर आपै है॥

    प्रबल प्रताप जब चढ़त बिलोकि बंक,

    बैरिनि कौ अमित अतंक पूरि तापै है।

    झाँपै तुरकनि कौ सितारा धूरि धारा माहिं,

    अस्व-टाप हिंदुनि की छाप छिति छापै है॥

    टार्यौ जौ कलंक-तम-तोम राजपूतनि कौ,

    बीस बिसे जाइ सो दिलीस-दृग छायौ है।

    कहै रतनाकर हर्यौ जो जाड़ भारत कौ,

    साई पैठि पारस कौ पंजर कँपायौ है॥

    प्रबल प्रताप कौ तपाकर-प्रताप-ताप,

    जमन-कलाप-मुख-आप जो सुखायौ है।

    तुरकिनि-आँखिनि मैं भाप ह्वै छयौ सो स्रवै,

    रुकत रुकायौ चुकन चुकायौ है॥

    साजि-साजि पागैं बागे पहिरि सुरंग चले,

    आनन पै कुंकुम उमंग कल दीपै है।

    कहै रतनाकर वरन कौं सुकीरति कैं,

    प्रबल-प्रभाव चारु चाव चढ्यौ जी पै है॥

    कढ़ी परै म्यान सौं कृपान बिनु लाऐं पानि,

    ऐसी कछु ठान की उठान आतुरी पै है।

    ब्याह कौ उछाह बढ्यौ चाहि निज बीरनि कैं,

    ठाट्यौ लै प्रताप ठाठ घाट हलदी पै है॥

    कीनी मिहमानी मन मानि के अतिथि पर,

    कानि रजपूती की जान दई कर सौं।

    कहै रतनाकर खायौ बैठि थारौ संग,

    सारी जानि साह कौ टिकायौ दूरि घर सौं॥

    मुग़ल पठान की धौंस धमकी सौं डर्यौ,

    दींहौं छाँड़ि कठिन कृपान छ्वाइ गर सौं।

    मानी मानसिंह की महान मान-हानी कर,

    प्रबल प्रताप ठान ठानी अकबर सौं॥

    रोज़ा नमाज़ हज्ज करि कै हज़ार हारे,

    ऐसी प्रथा पाई पै पावन प्रनाली की।

    कहै रतनाकर प्रताप कैं प्रताप तपैं,

    जैसी होति स्वच्छता बिपच्छिनि कुचाली की॥

    बीररस-मातौ जब घूमै रंग-भू में आनि,

    प्रगटति पद्धति पुनीत करवाली की।

    काली करै किलकि कलोल स्रोन-कुंड माहिं,

    म्लेच्छनि के मुंड माल होत मुंडमाली की॥

    कुंत असि सायक के फल सौं अघाए इमि,

    पायक नायक सिपाह सुलतानी के।

    कहै रतनाकर रही उठिबै की सक्ति,

    जित तित लोटैं परे लाड़िले पठानी के॥

    माँगत पानी हूँ किए यौं तृप्त जीवन सौं,

    ठाठि कै प्रताप नए ठाठ मेहमानी के।

    घाट-हलदी सौं जमपुर की बताइ बाट,

    म्लेच्छनि उतार्यौ घाट कठिन कृपानी के॥

    सेखनि की सेखी झारहीं सौं जरि छार भई,

    सूखे घट जीवन पठाननि अठानी के।

    कहै रतनाकर त्यौं गलित गुमान भए,

    साहसीक सैयद सिपाह सुलतानी के॥

    जागी ज्वाल-कौंध सौं चकाइ चकचौंधि परे,

    औंधि परे मुग़ल महान गोरकानी के।

    प्रबल प्रताप कौ प्रताप ताप दान देखि,

    पानी गए उतरि मलेच्छनि कृपानी के॥

    सूर-कुल-सूर महा प्रबल प्रताप सूर,

    चूर करिबे कौं म्लेच्छ कूर प्रन लीन्यौ है।

    कहै रतनाकर बिपत्तिनि की रेलारेल,

    झेलि झेलि मातभूमि-भक्ति-भाव भीन्यौ है॥

    बंस को सुभाव अरु नाम कौ प्रभाव थापि,

    दाप कै दिलीपति कौं ताप दीह दीन्यौ है।

    घाट हलदी पै जुद्ध ठाटि अरि मेद पाटि,

    सारथ बिराट मेदपाट नाम कीन्यौ है॥

    देस-ब्रत कठिन कठोर महा लोह-मयी,

    राजपूत-टेक पै बिबेक सौं बनाई है।

    कहै रतनाकर दढ़ाई दाप-दीपति सौं,

    बिषम बिपत्ति-घन-घातनि गढ़ाई है॥

    प्रबल प्रताप की सुढार तरवार-धार,

    जमन-कुचक्र खर सान सौं धराई हैं।

    धीर महिषी के उर-ताप में तपाई अरु,

    बालक-अधीर-नैन-नीर में बुझाई है॥

    बद्दल से ब्यूह मुग़लद्दल के जूह डाँटि,

    काटि काटि ठाटनि उघाटि बाट लींही है।

    कहै रतनाकर यौं पैठत सबेग जात,

    ताकी फहराति धुजा परति चीन्ही है॥

    केहरि लौं हेरत अहेर निज सौंहैं हेरि,

    फेर चारु चेतक दरेर नैंकु दींही है।

    सुंडी के भुसुंड पै उभारि कै अगौंहैं पाइ,

    मानी मानसिंह पै प्रचारि वार कींही है॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : रत्नाकर रचनावली (पृष्ठ 439)
    • संपादक : कमलाशंकर त्रिपाठी
    • रचनाकार : जगन्नाथदास रत्नाकर
    • प्रकाशन : उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ
    • संस्करण : 2009

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