भारत-भारती / अतीत खंड / ब्रिटिश राज्य
british rajy
अन्यायियों का राज्य भी क्या अचल रह सकता कभी?
आखिर हुए अँगरेज शासक, राज्य है जिनका अभी।
संप्रति समुन्नति की सभी हैं प्राप्त सुविधाएँ यहाँ,
सब पथ खुले हैं, भय नहीं विचरो जहाँ चाहो वहाँ॥
अन्याय यवनों का हमें निज दोष से सहना पड़ा,
है किंतु नारायण अहा! न्यायी तथा सकरुण बड़ा!
देते हुए भी कर्म-फल हम पर हुई उसकी दया,
भेजा प्रसिद्ध उदार जिसने ब्रिटिश राज्य यहाँ नया॥
शासन किसी पर जाति का चाहे विवेक-विशिष्ट हो,
संभव नहीं है किंतु जो सर्वांश में वह इष्ट हो।
यह सत्य है, तो भी ब्रिटिश शासन हमें सम्मान्य है,
वह सुव्यवस्थित है तथा आशा-प्रपूर्ण, वरदान्य है॥
संप्रति सभी साधन हमें हैं सुलभ आत्मविकास के,
पथ, रेल, तार मिटा रहे हैं सब प्रयास प्रवास के।
प्राय: चिकित्सालय, मदरसे, डाकघर हैं सब कहीं,
बस, पास पैसा चाहिए फिर कुछ असुविधा है नहीं॥
सचमुच ब्रिटिश साम्राज्य ने हमको बहुत कुछ है दिया,
विज्ञान का वैभव दिखाया समय से परिचित किया।
उससे हमारी कीर्ति का भी हो रहा उपकार है,
बहु पूर्व-चिह्नों का हुआ वा हो रहा उद्धार है॥
- पुस्तक : भारत भारती (पृष्ठ 80)
- रचनाकार : मैथलीशरण गुप्त
- प्रकाशन : साहित्य सदन चिरगाँव झाँसी
- संस्करण : 1984
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