उद्यान वर्णन
udyan warnan
विविधि सघन वृक्ष, लुंब झुंब केउ लक्ष।
बाग सो बहु विशाल, रितुषट हूं रसाल॥
जु जुई सकल जाति, वेलि गुल्ल कैं विभाति।
भरित अठारह भार, परधि बन्यौ पुकार॥
सारनी बहत सार, वृक्ष-वृक्ष मूलवार।
गिनिये सदा गंभीर, सुरभि चले समीर॥
अंबर बिलगि अंब, करनी बहु कदंब।
आंबिली तरू असोक, थठ्ठे सु अज्ञान थोक॥
आंवरी अगछि ऐंन, चंपकइ दोष चैन।
अति अखरोट अखि, चारू चार जीह चखि॥
कटल बढल कुंद, मालती रु मचकुंद।
करना कनेर केलि, राइनि सु राइवेलि॥
केतकी रु कचनार, केवरा पमोद कार।
खारिक पिंड खजूर, भाखिये अँगूर भूरि॥
गिनती कहा गुलाब, जंभीरि जुही जबाब।
जासूल जंबू सुजाइ, नारंगी निबो निन्याइ॥
ज्योंजा तूत नालिकेर, गुलतररा गिरि मेर।
चंदन महक्क चारु, दारिम सु देवदारु॥
तजरु तारु तमाल, मोगरा मधुप माल।
दमन पतंग दाख, पिसता यूराक पाख॥
फबत तरू फरास, पारस पीपर पास।
पाडल बहू प्रसंस, वेतस बिदाम बंस॥
बटबोर सिरिबोर, जानियै सुवर्ण जोर।
सुपारी सरोस सेव, सिंदूरी सदा सुटेव॥
संगर सरस दल, सुरुझना सदाफल।
बाग में गिनै विवेक, इत्यादि तरु अनेक॥
करत विहंग केल, मिथुन-मिथुन मेल।
मैन सारि सुआ मोर, चंचल बहू चकोर॥
सुनिये सबद्द सारु, हरष कुही हजारु।
कोकिल करैं कुहक्क, मंजरी भषैं नहक्क॥
काबरि कपोत कोरि, तूती फरु लेत तोरि।
लावारु तीतर लख, चंचु चारु मेवा चख॥
बटेर बाज बखान, संग गरुड़े सिंचान।
जोराबर जहां जंत, अश्व ते न आवे अंत॥
महल तहां महंत, कनक कलस कंत।
रायांगन बहु रूप, भले-भले बैठे भूप॥
चह बचा पिखे चारु, छुट्टत नल हजारु।
दतीनिके सुंडादंड, उदक धारा अखंड॥
बंगले बने विवेक, आछी कोरनी अनेक।
सजल तहाँ सुसर, कमल कनक झर॥
रच्यौ राणा सीह, अनम सदा अभीह।
सरब रितु बिलास, बगीचा सदा सुबास॥
कुंअर पनै सुकेलि, बहू बिधि वृक्ष बेलि।
गिनत न आवै गान, कहत कविंद मान॥
- पुस्तक : राजविलास (पृष्ठ 80)
- संपादक : भगवानदीन
- रचनाकार : मान कवि
- प्रकाशन : नागरीप्रचारिणी सभा, काशी
- संस्करण : 1912
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