Font by Mehr Nastaliq Web

मारवणी का सँदेसा

marawni ka sandesa

कल्लोल

कल्लोल

मारवणी का सँदेसा

कल्लोल

और अधिककल्लोल

    ढाढी जे प्रीतम मिलइ, यूँ कहि दाखवियाह।

    पंजर नहिं छइ प्रांणियउ, थाँ दिस झळ रहियाह॥

    पंथि, एक संदेसड़उ भल माणस नइ भख्ख।

    आतम तुझ पासइ अछइ, ओळग रूड़ा रख्ख॥

    ढाढी, जे राज्यँद मिलइ, यूँ दाखविया जाइ।

    जोबण हस्ती मद चढ्यउ, अंकुस लइ घरि आइ॥

    ढाढी, जे साहिब मिलइ, यू दाखविया जाइ।

    आँख्याँ सीप विकासियाँ, स्वाति बरसउ आइ॥

    ढाढी, एक सँदेसड़उ, कहि ढोला समझाइ।

    जोवण आँबउ फलि राह्यउ साख खाअउ आइ॥

    ढाढी, जड़ प्रीतम मिलइ, यूँ दाखविया जाइ।

    जोबण छत्र उपाड़ियउ, राज बइसउ काइ॥

    ढाढी, जइ साहिब मिलइ, यूँ दाखविया जाइ।

    जोबण कमळ विकासियउ भमर बइसइ आइ॥

    ढाढी, एक सँदेसड़उ, ढोलइ लगि लइ जाइ।

    जोबन चाँपउ मउरियउ, कळी चुट्टइ आइ॥

    ढाढी, एक सँदेसड़उ, ढोलइ लगि लइ जाइ।

    कण पाकर करसण हुअउ, भोग लियउ घरि आइ॥

    ढाढी, एक सँदेसड़उ, ढोलइ लगि लइ जाइ।

    जोबण फट्टि तलावड़ी, पाळि बंधउ काँइ॥

    पंथी, एक सँदेसड़उ, लग ढोलउ पैहचाइ।

    विरह महादव जागियउ, अगिन बुझावउ आइ॥

    पही, भमंता जइ मिलइ, तउ प्री आखे भाय।

    जोबण बंधन तोड़इ, बंधण घातउ आय॥

    पंथी, एक सँदेसड़उ, लग ढोलइ पैहचाइ।

    निकसी वेणी सापणी, स्वात वरसउ आइ॥

    पंथी, एक सँदेसड़उ लग ढोलइ पैहचाइ।

    तन मन उत्तर बाळियड दख्खण वाजइ आइ॥

    पंथी, एक सँदेसड़इ, लग ढोलइ पैहच्याइ।

    विरह महाविस तन वसइ, ओखद दियइ आइ॥

    पंथी, एक सँदेसड़इ, लग ढोलइ पैहच्याइ।

    विरह वाघ वनि तनि वसइ, सेहर गाजइ आइ॥

    पंथी एक सँदेसड़इ, लग ढोलइ पैहचाइ।

    धुण कँमलाँणी, कमदणी, सिसहर ऊगइ आइ॥

    पंथी एक सँदेसड़इ, लग ढोलइ पैहच्याइ।

    धुण कँमलाँणी कॅँमलणी, सूरिज ऊगइ आइ॥

    पंथी, एक सँदेसड़उ, लग ढोलइ पैहच्याइ।

    जोवन खीर समुंद्र हुइ, रतन काढइ आइ॥

    पंथी एक सँदेसड़इ, लग ढोलइ पैहच्याइ।

    जंघा केळिनि फळि गई, स्वात जु, बरसउ आइ॥

    पंथी, एक सँदेसड़उ लग ढोलइ पैहच्याइ।

    सावज संबळ तोड़स्यइ, बैसासणइ जाइ॥

    पंथी, एक सँदेसड़उ लग ढोलइ पैहच्याय।

    जोबन जाएइ प्राहुणउ वेमइरउ घर आय॥

    पही, भमंतउ जउ मिलइ, कहे अम्हीणी बत्त।

    धण कँणयररी कंब ज्यउँ, सूकी तोइ सुरत्त॥

    पंथी, एक संदेसड़उ कहिज्यउ सात सलाँम।

    जबथी हमतुम बीछड़े, नयणे नींद हराँम॥

    पंथी हाथ सँदेसड़इ, धण बिललंती देह।

    पगसूँ काढइ लीहटी, उर आँसुआँ भरेह॥

    ढोला, ढीली हर किया, मूंक्या मनह विसारि।

    संदेसउ हन पाठवइ, जीवाँ किसइ अधारि॥

    ढोला, ढीली हर मुझ, दीठउ घणो जणेह।

    चोल बरन्ने कप्पड़े, सावर धन अणेह॥

    कागळ नहीं, मस नहीं, नहीं लेखणहार।

    संदेसा ही नाविया, जीवुँ किसइ आधार॥

    कागळ नहीं, मसि नहीं, लिखताँ आळस थाइ।

    कह उण देस सँदेसडा, मोलइ वड़इ विकाइ॥

    वायस वीजउ नाम ते, आगलि लल्लउ ठवइ।

    जइ तू हुई सुजाँड, तउ तूँ वहिलउ मोकळे॥

    सँदेसउ जिन पाठवइ, मरिस्यउँ हीया फूटि।

    पारेवाका झूल जिउँ, पड़िनइँ आँगणि त्रूटि॥

    संदेसा मति मोकळउ, प्रीतम, तूँ आवेस।

    आँगुलड़ी ही गळि गयाँ, नयण वाँचण देस॥

    फागुण मासि वसंत रुत, आयउ जइ सुणेसि।

    चाचरिकइ मिस खेलती, होळी झंपावेसि॥

    जइ तूँ ढोला नावियउ, कइ फागुण कइ चेत्रि।

    तउ म्हे घोड़ा बाँधिस्याँ, काती कुड़ियाँ खेत्रि॥

    जउ साहिब तू नावियउ मेहाँ पहलइ पूर।

    विचइ वहेसी वाहळा, दूर दूरे दूर॥

    सज्जणिया, सावण हुया, धड़ि उलटी भंडार।

    विरह महारस ऊमटइ, के ताकहूँ सँभार॥

    जउ तूँ साहिब, नावियउ सावण पहिली तीज।

    बीजळ तणइ झबूकड़इ, मूंध मरेसी खीज॥

    जइ तूँ ढोला, नावियउ काजळियारी तीज।

    चमक मरेसी मारवी, देख खिवंताँ वीज॥

    जउ तूँ ढोला, नावियउ मेहाँ नीगमताँह।

    किया करायइ सज्जणा, दाधा माँहि घणाँह॥

    राति रूँनी निसह भरि, सुणी महाजनि लोइ।

    हाथाळी छाला पड्या, चीर निचोइ निचोइ॥

    ढोला, मिलिसि बीसरिसि, नवि आविसि ना लेसि।

    मारू तणइ करकंडइ, वाइस ऊडावेसि॥

    अकथ कहाणी प्रेम की, किणसूँ कही जाइ।

    गूँगाका सुपना भया, सुमर सुमर पिछताइ॥

    चंदणदेह कपूररस, सीतळ गंगप्रवाह।

    मनरंजण, तनउल्हवण, कदे मिलेसी नाह॥

    मत जाणे प्रिउ, नेह गयउ दूर बिदेस गयाँह।

    बिवणउ बढ़ता सज्जणाँ, ओछउ ओहि खळाँह॥

    आँखड़ियाँ डंबर हुई, नयण गमाया रोय।

    से साजण परदेसमइँ, रह्या पराया होय॥

    वालँभ, एक हिलोर दे, आइ सकइ तउ आइ।

    बाँहड़ियाँ बे थक्कियाँ, काग उडाइ उडाइ॥

    पावस मास, विदेस प्रिय, घरि तरुणी कुळसुध्ध।

    सारँग सिखर, निसद्द करि, मरइ कोमळ मुध्ध॥

    तुँही सज्जण, मित्त तूँ, प्रीतम तूँ परिवाँण।

    हियड़इ भीतरि तूँ वसइ, भावइँ जाण जाँण॥

    हूँ बळिहारी सज्जणाँ, सज्जण मो बळिहार।

    हूँ सज्जण पग पानही, सज्जण मो गळहार॥

    लोभी ठाकुर, आवि घरि, काँई करइ विदेसि।

    दिन दिन जोवण तन खिसइ, लाभ किसाकउ लेसि॥

    बहु धंधाळू आव घरि, काँसू करइ वदेस।

    संपत सघळी संपजे, दिन कदी लहेस॥

    संभारियाँ सँताप, वीसारिया वीसरइ।

    काळेजा बिचि, काप, परहर तूँ फाटइ नहीं॥

    यह तन जारी मसि करूँ, यूँआ जाहि सरग्गि।

    मुझ प्रिय बद्दळ होइ करि, वरसि, बुझावइ अग्गि॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : ढोला मारू रा दूहा (पृष्ठ 102)
    • संपादक : रामसिंह, सूर्यकरण पारीक, नरोत्तमदास स्वामी
    • रचनाकार : कुशललाभ
    • प्रकाशन : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर
    • संस्करण : 2005
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली

    टिकट ख़रीदिए