किं नु पयावइ अधंलउ अहव वियड्ढलु आहि।
जिणि एरिसि तिय णिम्मविय ठविय न अप्पह पाहि॥
अइकुडिल माइपिहुणा विविहृतरंगिणिसु सलिलकल्लोला।
किसणत्तणंमि अलया अलिउलमाल व्व रेहंति॥
रयणीतमविद्दवणो अमियंझरणो सुपुण्णसोमो य।
अकलंक माइ वयणं वासरणाहस्स पडिबिंबं॥
लोयणजुयं च णज्जइ रविंदल दीहरं च राइल्लं।
पिंडीरकुसुमपुंजं तरुणिकवोला कलिज्जंति॥
कोमल मुणालणलयं अमरसरुपन्न बाहुजुयलं से।
ताणंते करकमलं णज्जइ दोहाइयं पउमं॥
सिहणा सुयण-खला इव थड्ढा निच्चुन्नया य मुहरहिया।
संगमि सुयणसरिच्छा आसासहि बेवि अंगाइँ॥
गिरिणइ समआवत्तं जोइज्जइ णाहिमंडलं गुहिरं।
मज्झं मच्चसहं भिव तुच्छं तरलग्गई हरणं॥
जालंधरिथंभजिया उरू रेहंति तासु अइरम्मा।
वट्ठा य णाइदीहा सरसा सुमणोहरा जंघा॥
रेहंति पउमराइ व चलणंगुलि फलिहकुट्टि णहपंती।
तुच्छं रोमतरंगं उब्बिन्नं कुसुमनलएसुं॥
सयलज्ज सिरेविणु पयडियाइँ अंगाइँ तीइवि सुसंविसेसं।
को कवियणाण दूसइ सिट्ठं विहिणावि पुणरुत्त॥
क्या प्रजापति अंधा है अथवा अरसिक है, जिसने ऎसी स्त्री को बनाकर करके अपने पास ही नहीं रख लिया। चुगलखोर जन की भाँति कुटिल, जल तरंग की भाँति लहराते हुए, और कालिमा में भौंरों की पंक्ति की तरह केश शोभित हो रहे हैं। रात्रि के अंधकार का नाश करने वाले अमृतदाता पूर्ण चंद्रमा के समान उस रमणी का मुख निष्कलंकता में सूर्य के प्रतिबिंब के समान है। दीर्घ रागयुक्त युगल नयन मानो अरविंद दल हैं, और तरुण कपोल दाड़िमकुसुम पुंज की भाँति सुंदर हैं। इसकी भुजाएँ मानसरोवर में उत्पन्न कोमल मृणाल नाल के समान हैं। बाहुओं के आख़िरी किनारे पर हाथ ऐसे लग रहे हैं मानो दो भागों में विभाजित पद्म हों। दोनों स्तन सज्जन और दुष्ट की तरह हैं; स्तब्ध नित्य उन्नत और छिद्र रहित होने के कारण दुष्ट की भाँति हैं और मिलने पर सज्जन की भाँति वे दोनों स्तन अंगों को आश्वस्त करते हैं। नाभिमंडल पर्वतीय नदी के आवर्त के समान गंभीर है और कटि मर्त्य सुख की भाँति सूक्ष्म है जिसके कारण वह तेज़ी से चल नहीं पाती है। उसकी रमणीय जंघाएँ कदली स्तंभ से बढ़कर हैं। सरस और सुमनोहर जंघाएँ वृत्ताकार और नातिदीर्घ हैं। पैरों की उँगलियाँ पद्मराजि की तरह हैं। नखपंक्ति स्फटिक खंडों की भाँति है और कोमल रोमावली उद्भिन्न कुसुम नाल की भाँति हैं। पार्वती को उत्पन्न करके प्रजापति ने उससे भी कुछ अधिक विशेषताओं के साथ इस नायिका के अंगों को निर्मित किया है। कवियों को कौन दोष दे सकता है जब स्वयं ब्रह्मा ने ही पुनरुक्ति की सृष्टि की।
- पुस्तक : संदेश रासक (पृष्ठ 150)
- रचनाकार : अब्दुल रहमान
- प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
- संस्करण : 1991
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