रूप वर्णन
roop warnan
कहिये सुभ राज कुंआरी, अच्छी अपच्छरी अनुहारी।
वपु सोभा कंचन बरनी, हरि हर ब्रह्मा मन हरनी॥
सचि सुरभि स कोमल सारी, कव्वरि मनु नागिनि कारी।
सिर मोती मांग सु साजैं, राखरी कनक मय राजैं॥
लखि शीश फूल रवि लोपैं, अष्ठमि शशि भाल सु ओपैं।
बिंदुली जराउ बखानी, अलि भृकुटि ओपमा आनी॥
छवि अंजन दृग मृग छोना, पतनिय श्रुति जरित तरोना।
नकबेसरि सोहति नासा, पयनिधि सुत लाल प्रकाशा॥
पल उपचित गच्छ प्रधानं, अति अरुन अधर उपमानं।
रद दारिम बीज रसाला, पढ़िये मनु बिंब प्रवाला॥
कलकंठ सुरसना कुहकें, मुख स्वास कुसम वर महकें।
चित चुभी चिबुक चतुराई, ससि पूरन वदन सुहाई॥
मनु काम लता इहू मोरी, नीकी गर पोतिन बोरी।
कँठसिरी तीलरी कहियै, चंपकली हंस सुभ चहियै॥
मयगल मोतिन की माला, मनि मंडित झाकझमाला।
चोकी चामीकर चंगी, रतनाली छबि बहुरंगी॥
अष्टादश सर अभिरामं, नव सर षट सर किहि नामं।
हारावलि मंडित हेमं, पहिरी बर कंठहि पेमं॥
उर उरज उभय अधिकाई, श्री फल उपमा सुभ भाई।
लीलक कंचुकी निहारी, भुजदंड प्रलंब सभारी॥
बर करन कनक भय बंधं, बिलसत दुति बाजू बंधं।
चूरो कंकन सो चहिये, गजरा पोचिय गुन गहिये॥
मुद्रिय अंगुरि मन मानी, कंचन नग जरित कहानी।
महदी मय बेलिसु मंडी, तिन पानि सोभ बहु तंडी॥
मच्छोदारि तिवलिय मष्भे, वापी सभ नाभि सु बुष्भे।
कटि मेखल मनि कुंदन की, तरनिय सी सोभा तिनकी॥
चरना रंगित बहु चोलं, पहिरन बर पीत पटोलं।
वर सभर गेह सुचि बिंबं, नीके गुरु युगल नितंबं॥
करि कर जंघा जुग कंतं, झंझरि पय धुनि झमकंतं।
पाइल क्षुद्राबलि रंगं, आभूषण ओर उपंगं॥
रुचि सहज पाइ तल रत्तै, जावक वर सोभ सु त जित्ते।
गोरी सी सागय गवनी, रंभा रति केहरि रवनी॥
जमु रूप अधिक इक जीहा, लहियें क्यौं पार सुलीहा।
कवि मान कहै सुखकारी, नन ता सम को वर नारी॥
- पुस्तक : राजविलास (पृष्ठ 104)
- संपादक : भगवानदीन
- रचनाकार : मान कवि
- प्रकाशन : नागरीप्रचारिणी सभा, काशी
- संस्करण : 1912
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