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मारवणी-रूप-वर्णन

marawni roop warnan

कल्लोल

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    गति गंगा, मति सरसती, सीता सीळ सुभाइ।

    महिलाँ सरहर - मारुई, अवर दूजी काइ॥

    नमणी, खमणी, बहुगुणी, सुकोमळी जु सुकच्छ।

    गोरी गंगा नीर ज्यूँ, मन गरवी, तन अच्छ॥

    रूप अनूपम मारुवी, सुगुणी नयण सुचंग।

    सा धण इण परि राखिजइ, जिम सिव-मसतक गंग॥

    गति गयंद, अँघ केळिग्रभ, केहरि जिम कटि लंक।

    हीर डसण, विद्रम अधर, मारू - भृकुटि मयंक॥

    मारू - घूँघटि दिट्ठ मइँ, एता सहित पुणिंद।

    कीर, भमर, कोकिल, कमळ, चंद, मयंद, गयंद॥

    नमणी, खमणी, बहुगुणी, सगुणी अनइ सियाइ।

    जे धण एही संपजइ, तउ जिम ठल्लउ जाइ॥

    मारू - देस उपन्नियाँ, ताँहका दंत सुसेत।

    कूँझ - बचाँ गोरंगियाँ; खंजर जेहा नेत॥

    खंजर नेत विसाल, गय चाही लागइ चख्ख।

    एकण साटइ मारुवी, देह एराकी लख्ख॥

    तीखा लोयण, कटि करल, उर रत्तड़ा बिबीह।

    ढोला, थाँकी मारुई जाँणि विलूधउ सीह॥

    डीभू लंक, मराळि गय, पिक - सर एही वाँणि।

    ढोला, एही मारुई, जेहा हंझ निवाणि॥

    मारू - लँक दुइ अंगुळाँ, वर नितंब उस भंस।

    मल्हपइ माँझ सहेलियाँ, माँनसरोवर हंस॥

    चंपावरनी, नाक सळ, उर सुचंग, विचि हीण।

    मंदिर बोली मारुवी, जाँणि भणक्की वीण॥

    आदीताहूँ ऊजळो, मारवणी - मुख - ब्रन्न।

    झीणा कप्पण पहिरणइ, जाँणि आँखइ सोव्रन॥

    भुमुहाँ ऊपरि सोहलो परिठिउ जाँणि चंग।

    ढोला, एही मारुवी नव नेही, नव रंग॥

    मृगनयणी, मृगपति - मुखी, मृगमद तिलक निलाट।

    मृगरिपु - कटि सुंदर वणी, मारू अइहइ घाट॥

    थळ भूरा, वन झंखरा, नहीं सु चंपउ जाइ।

    गुणे सुगंधी मारवी, महकी सहु वणराइ॥

    लखण बतीसे मारुवी निधि, चंद्रमा निलाट।

    काया कूँकूँ जेहवी, कटि केहरि सै घाट॥

    आहर, पयोहर, दुइ नयण, मीठा जेहा मख्ख।

    ढोला, एही मारुई जाणे मीठी दख्ख॥

    अंगि अभोखण अच्छियउ, तन सोवन सगळाइ।

    मारू अंबा-मउर जिम, कर लग्गइ कुँमळाइ॥

    अहर अभोखण ढंकियउ सो नयठे रँग लाय।

    मारू पक्का अंब ज्यूँ, झरइ लग्गे वाय॥

    जंघ सुपत्तळ, करि कुँअळ, झीणी लंब-प्रलंब।

    ढोला, एही मारुई जाँणि कणयर-कंब॥

    उरि गयवर, नइ पग भमर, हालंती गय हंझ।

    मारू पारेवाह ज्यूँ, अंखी रत्ता मंझ॥

    मारू मारइ पहियड़ा, जउ पहिरइ सोवन्न।

    दंती, चूड़इ, मोतियाँ, त्रीयाँ हेक वरन्न॥

    कसतूरी कड़ि केवड़ो, मसकत जाए महक्क।

    मारू दाड़म - फूल जिम, दिन - दिन नवी डहक्क॥

    ढोला, सायधण माँणने, झीणी पाँसळियाँह।

    कइ लाभे हर पूजियाँ, हेमाळे गळियाँह॥

    मारू सी देखी नहीं, अण मुख दोय नयणाँह।

    थोड़ो सो भोळे पड़इ, दणयर उगहताहँ॥

    चंदवदन, मृगलोयणी, भीसुर ससदळ भाल।

    नासिका दीप - सिखा जिसी, केळ - गरभसुकमाळ॥

    दंत जिसा दाड़म कुळी, सीस फूल सिणगार।

    काने कुंडळ भळहळइ, कंठ टँकावळ हार॥

    बाँहे सुंदरि बहरखा, चासू चुड़ वचार।

    मनुहरि कटि थळ मेखळा, पग झांझर झणकार॥

    बाँहड़ियाँ रूँआळियाँ, धण बंके नयणेह।

    जण - जण साथ बोलही, मारू बहुत गुणेह॥

    मारू - देस उपन्नियाँ, नड़ जिम नीसरियाँह।

    साइ धण, ढोला, एहवी, सरि जिम पध्धरियाँह॥

    मारू - देस उपन्नियाँ, सर ज्यऊँ पध्धरियाँह।

    कडुआ बोल जाणही, मीठा बोलणियाँह॥

    देस सुहावउ, जळ सजळ, मीठा-बोला लोइ।

    मारू काँमण भुइँ दखिण, जइ हरि दियइ होइ॥

    तेता मारू माँहि गुण, जेता तारा अभ्भ।

    उच्चळचित्ता साजणाँ, कहि क्यउँ दाखउँ सभ्भ॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : ढोला मारू रा दूहा (पृष्ठ 153)
    • संपादक : रामसिंह, सूर्यकरण पारीक, नरोत्तमदास स्वामी
    • रचनाकार : कुशललाभ
    • प्रकाशन : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर
    • संस्करण : 2005

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