बाढ़ी वीर हाक हर डाक हर डाक भुव चाक चढ़ी
baDhi weer hak har Dak har Dak bhuw chaak chaDhi
गणेशपुरी पद्मेश
Ganeshpuri Padmesh
बाढ़ी वीर हाक हर डाक हर डाक भुव चाक चढ़ी
baDhi weer hak har Dak har Dak bhuw chaak chaDhi
Ganeshpuri Padmesh
गणेशपुरी पद्मेश
और अधिकगणेशपुरी पद्मेश
बाढ़ी वीर हाक हर डाक भुव चाक चढ़ी,
ताक-ताक रही हूर छाक चहुं कोद में।
बोलिकै कुबोल हय तोल बहलोल खाँ पै,
बागो आन कत्ता रान पत्ता को विनोद में॥
टोप कटि टोटी लाल टोपा कटि पीत पट,
सीस कटि अंग मिली उपमा सु मोद में।
राहू गोद मंगल की मंगल गुरु की गोद,
गुरु गोद चंद की चंद रवि गोद में॥
चारों ओर शूरवीरों की हाक बढ़ी। महादेव की डाक (वाद्य विशेष) वीरों का उत्साह बढ़ाने लगी, भूमि चक्र पर चढ़ी और अप्सराएँ तृप्त होकर चारों ओर देखने लगीं। ऐसे समय में अश्व को सम्हाल कर कटु वचन बोलते हुए महाराणा प्रतापसिंह ने विनोद में मुग़ल बहलोल खाँ पर अपना कत्ता (खड्ग) चलाया जिससे उसकी कमर कट कर, सिर का लाल मुकुट, कमर का पीला कपड़ा, और सिर तक कट गया। उस समय आनंद में क्रम से ऐसी उपमा प्रतीत हुई कि, मानो श्याम वर्ण राहु रक्तवर्ण मंगल की गोद में, मंगल पीत वर्ण बृहस्पति की गोद में, बृहस्पति स्वच्छ चंद्रमा की गोद में और चंद्रमा ओजस्वी सूर्य की गोद में हों।
- पुस्तक : साहित्य प्रभाकर (पृष्ठ 492)
- संपादक : महालचंद बयेद
- रचनाकार : गणेशपुरी पद्मेश
- प्रकाशन : ओसवाल प्रेस कलकत्ता
- संस्करण : 1937
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