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उमड़ि घुमड़ि घन आवत अटान चोट

umaDi ghumaDi ghan aawat atan chot

घनश्याम शुक्ल

घनश्याम शुक्ल

उमड़ि घुमड़ि घन आवत अटान चोट

घनश्याम शुक्ल

और अधिकघनश्याम शुक्ल

    उमड़ि घुमड़ि घन आवत अटान चोट,

    घन-घन जोति छटा छटकि-छटकि जात।

    सोर करें चातक चकोर पिक चहवार

    मोर ग्रीव मोरि-मोरि मटकि-मटकि जात॥

    सावन लौं आवन सुनो है घनश्याम जू को,

    आँगन लौ आय-पाँय पटकि-पटकि जात।

    हिये बिरहानल की तपनि अपार उर,

    हार गज मोतिन को चटकि-चटकि जात॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : साहित्य प्रभाकर (पृष्ठ 227)
    • संपादक : महालचंद बयेद
    • रचनाकार : घनश्याम शुक्ल
    • प्रकाशन : ओसवाल प्रेस कलकत्ता
    • संस्करण : 1937

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