उझकि चलत झुकि सरकि उसीसे ही कों
ujhaki chalat jhuki saraki usise hi kon
उझकि चलत झुकि सरकि उसीसे ही कों,
तरकि करकि भौंहें होत अलबेली की।
सरकि सरकि सारी खरकि खरकि चूरी,
मुरकि मुरकि कटि जात यों नवेली की।
‘बोधा' कबि छहरि छहरि मोती छहरात,
थहरि थहरि देह कँपत न केली की।
नीबी के छुवत प्यारी उलथि कलथि जात,
पौन लागे लोट जात बेली ज्यों चमेली की॥
- पुस्तक : रीतिमुक्त कवि : नया परिदृश्य (पृष्ठ 161)
- संपादक : रामफेर त्रिपाठी
- रचनाकार : बोधा
- प्रकाशन : मधु प्रकाशन, इलाहाबाद
- संस्करण : 1382
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