टोपी को चढ़ावें सीस टोपी को लजैबै हेत
topi ko chaDhawen sees topi ko lajaibai het
शिवकुमार केडिया 'कुमार'
Shivkumar Kediya
टोपी को चढ़ावें सीस टोपी को लजैबै हेत
topi ko chaDhawen sees topi ko lajaibai het
Shivkumar Kediya
शिवकुमार केडिया 'कुमार'
और अधिकशिवकुमार केडिया 'कुमार'
टोपी को चढ़ावें सीस टोपी को लजैबै हेत,
पदवी तुरंत त्यागैं पदवी बढ़ैबै को।
कहत 'कुमार' काति सूत की लगावै झरी,
उदर दरो की ज्वाल भीषन बुझैबै कों॥
संपत्ति सिरावैं सबैं संपत्ति समेटिबै कों,
विपति बटोरत बिपत्ति बिनसैबै कों।
पुन्य-पुंज प्यारे पूत-आतमा सपूतन की,
देश बलि देत हैं सपूत उपजैबै कों॥
- पुस्तक : साहित्य प्रभाकर (पृष्ठ 585)
- संपादक : महालचंद बयेद
- रचनाकार : शिवकुमार केडिया
- प्रकाशन : ओसवाल प्रेस कलकत्ता
- संस्करण : 1937
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