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तौब वह ग्यान कछु काच कौ धरम नाँही

taub wo gyan kachhu kach kau dharam nanhi

जसवंत सिंह

जसवंत सिंह

तौब वह ग्यान कछु काच कौ धरम नाँही

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    तौब वह ग्यान कछु काच कौ धरम नाँही,

    अंतहकरन हू कौ धरम वह है।

    जौ ही लौं है धाम अरु काच वह वाही ठौर,

    तौ लौं वह ग्यान के आभास कौ मरम है।

    तैसें ही सरीर अरु अंतहकरन जौ लौं,

    तबहीं लौ ग्यान के आभास कौ भरम है।

    ग्यान कौ अभास यह तामें तो संदेह नाँहि,

    याही सौं कहत जीव याही सौं करम है॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : जसवंतसिंह ग्रंथावली (पृष्ठ 140)
    • संपादक : विश्वनाथप्रसाद मिश्र
    • रचनाकार : जसवंत सिंह
    • प्रकाशन : नागरीप्रचारिणी सभा, वाराणसी
    • संस्करण : 1972

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