सुबरन रंग सुकुमारि सवै भावनि सों
subran rang sukumari sawai bhawani son
सुबरन रंग सुकुमारि सवै भावनि सों,
अंगनि उछाह की लहरि लहरी रहति।
भूषन बसन चारु दसनि हसनि और,
नैननि में प्रेम रस प्यास गहरी रहति।
सोमनाथ प्यारे अलि भाँवरे भरत रहै,
चहूँधा चकोरनि की चौकी ठहरी रहति।
सरद कौ चंद कैसे कहौं मुख चंद सम,
छहूँ रित जाकी छवि छटा छहरी रहति॥
- पुस्तक : सोमनाथ ग्रंथावली, प्रथम खंड (पृष्ठ 62)
- संपादक : सुधाकर पांडेय
- रचनाकार : सोमनाथ
- प्रकाशन : नागरीप्रचारिणी सभा, वाराणसी
- संस्करण : 1972
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