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सीतल समीर ढार मंजन कै घनसार

sital samir Dhaar manjan kai ghansar

प्रवीणराय

प्रवीणराय

सीतल समीर ढार मंजन कै घनसार

प्रवीणराय

और अधिकप्रवीणराय

    सीतल समीर ढार मंजन कै घनसार,

    अमल अँगौछे आछे मन से सुधारिहौं।

    दैहौं ना पलक एक लागन पलक पर,

    मिलि अभिराम आछी तपनि उतारिहौं॥

    कहत 'प्रवीनराय' आपनी ठौर पाय,

    सुन बाम नैन या वचन प्रतिपारिहौं।

    जबहीं मिलेंगे मोहिं इंद्रजीत प्रान प्यारे,

    दाहिनो नयन मूंदि तोही सौं निहारिहौं॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : साहित्य प्रभाकर (पृष्ठ 123)
    • संपादक : महालचंद बयेद
    • रचनाकार : प्रवीणराय
    • प्रकाशन : ओसवाल प्रेस कलकत्ता
    • संस्करण : 1937

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