सिय-मुख चंद त्याग दूजो चंद मद कहाँ
siy mukh chand tyag dujo chand mad kahan
सिय-मुख चंद त्याग दूजो चंद मद कहाँ,
कौन गुण जानि समता में अवलोकों मैं।
मुख अकलंकी सकलंकी तू प्रसिद्ध जग,
कहि समझाऊँ कैसे वाको जाय रोकों मैं॥
दिवा द्युति-हीन घन समय मलीन-खीन,
‘राम-प्रिया’ जानै तोहिं जन सब लोकों मैं।
लली मुख लालिमा गुलाल सो लखत जैसे,
तैसी दरसावो तो सराहौ तब तोकों मैं॥
- पुस्तक : हिन्दी काव्य की कलामयी तारिकाएँ (पृष्ठ 76)
- संपादक : श्रीयुत रामशंकर शुल्क 'रसाल'
- रचनाकार : रामप्रिया
- प्रकाशन : प्रमोद पुस्तक माला काटरा, प्रयाग
- संस्करण : 1941
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