भले भूप कहत भले भदेस भूपनि सों
bhale bhoop kahat bhale bhades bhupani son
भले भूप कहत भले भदेस भूपनि सों,
'लोक लखि बोलिए, पुनीत रीतिमारखी'।
जगदंबा जानकी, जगत पितु रामचंद्र,
जानि, जिय जोवो, जो न लागै मुँह कारखी॥
देखे हैं अनेक ब्याह, सुने हैं पुरान वेद,
बूझे हैं सुजान-साधु नर-नारि पारखी।
ऐसे सम समधी समाज ना विराजमान,
राम-से न वर, दुलही न सिय सारखी॥
अच्छे राजा दुष्ट राजाओं से अच्छी बातें कहते हैं कि संसार को देखकर ऋषियों की बतलाई हुई पवित्र रीति को कहना उचित है। जानकी को संसार की माता और रामचंद्र को संसार का पिता समझकर हृदय में देखो जिससे तुम लोगों के मुँह में कालिख न लगे—कलंकित न होना पड़े। हमने बहुत से ब्याह देखे हैं, वेद-पुराण सुने हैं, और ज्ञानी महात्माओं तथा अनुभवी स्त्री-पुरुषों से पूछा है। सबसे यही ज्ञात हुआ है कि कहीं भी दशरथ और जनक की तरह समान गुण और स्वभाव वाले और रामचंद्र सरीखे वर तथा सीता सरीखी दुलही नहीं है।
- पुस्तक : कवितावली (पृष्ठ 15)
- संपादक : देवीनारायण द्विवेदी
- रचनाकार : तुलसीदास
- प्रकाशन : एस.बी.सिंह, काशी-पुस्तक-भंंडार, बनारस
- संस्करण : 1999
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