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धूमसे धुंधारे कहुँ काजर से कारे

dhuumase dhu.ndhaare kahu.n kaajar se kaare

श्रीपति

श्रीपति

धूमसे धुंधारे कहुँ काजर से कारे

श्रीपति

और अधिकश्रीपति

    धूमसे धुंधारे कहुँ काजर से कारे ये

    निपट बिकरारे मोहिं लागत सघन के।

    ‘श्रीपति’ सोहावन सलिल बरसावन

    सरीरमें लगावन वियोगिन तियन के॥

    दरजि दरजि हिय लरिज लरजि करि

    अरजि अरजि पाँय पकरें मदन के।

    बरजि बरजि अति तरजि मोपै

    गरजि गरजि उठें बादर गगन के॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : हिंदी काव्य गंगा (प्रथम भाग) (पृष्ठ 247)
    • संपादक : सुधाकर पांडेय
    • रचनाकार : श्रीपति
    • प्रकाशन : नागरीप्रचारिणी सभा, वाराणसी

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